कबीर 'बीजक' जीव धन को बताता है पांच तत्व के भीतरे गुप्त वस्तु स्थान , बिरला मरण कोई पाइये गुरु के शब्द प्रमाण। जीव (पांच तत्व के पुतले )के अंदर जो चैतन्य साक्षी है , वही संस्कारों का धारक है। माया और मन का बोध कराता है बीजक। जो अंदर है उसे हम बाहर खोजते हैं। आत्मा राम सत्ता है। सारा प्रतीत परिवर्तनशील है। आत्मा राम सत्ता यथार्थ है। मन मायाकृत साक्ष्य है ,मिथ्या है। जीवन की सार्थकता है 'स्व :' और 'पर ' का बोध। 'स्व : ' तत्व सनातन है। सत्य सदैव सत्य रहता है ,'पर' एक प्रतीति है परिवर्तनशील है। अंतर् ज्योत गुणवाचक है। "अंतर् ज्योत शब्द एक नारी ,ताते हुए हरि ब्रह्मा त्रिपुरारी। " नारी शब्द का अर्थ यहां कल्पना शक्ति है। अन्तर -ज्योत से ही सारे ज्ञान का विकास हुआ है। जीव के अंदर एक शाश्वत तत्व है वह अंतर्ज्योति है। कबीर सृष्टि का आरम्भ नहीं मानते हैं। कबीर के यहां 'ब्रह्म' पहले अग्नि को कहा गया। जो बढ़े (अग्नि की तरह )वह ब्रह्म है। 'रज' से सृष्टि होत...