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हिंदुत्व :कुछ मूल भूत अवधारणाएं

हिंदुत्व :कुछ मूल भूत अवधारणाएं 

ETERNAL ESSENTIAL HINDUISM 

अनुयाइयों ने हिंदुत्व ,हिन्दू धर्म को वास्तव में सनातन  धर्म कहा  है।संख्या बल यानी अनुयाइयों की संख्या के हिसाब से यह विश्व का तीसरा बड़ा धर्म बतलाया गया है। इसका मतलब यह हुआ , विश्व का हर छटा व्यक्ति हिंदुत्व को  मान ने वाला है। 
 प्रागैतिहासिक समझा गया है  धरती के इस सबसे प्राचीन धर्म को। इसका कोई आदि हाथ नहीं आता। हमेशा रहा है यह। 

ETERNAL TRUTH SANATAN DHARMA 

मानवकृत पंथ नहीं है हिंदुत्व ,हिन्दू धर्म  वेदों से स्वत :प्रसूत एक धारा का नाम है जो सर्वसमावेशी  सर्वग्राही रही आई है। यह सनातन  धर्म संतों साधुओं के अनुभव में आया। साधना के दौरान यह उनकी अनुभूति का विषय बना। इसके अंतर्गत आप चर्चा करते हैं योग की ,आयुर्वेद ,वास्तु कला ,कर्म ,अहिंसा ,वेदांत जैसी अवधारणाओं की एवं ऐसे ही अन्य  विषयों की।

यहां एक ही परमात्मा की अवधरणा है जिसका प्राकट्य अव्यक्त से व्यक्त की ओर  है अनेक रूपों में प्रकट हुआ है । यानी अव्यक्त ही व्यक्त हुआ है। यहां सृष्टि ,सृष्टिकर्ता में अभेदत्व है। 
कुम्हार जब  मिट्टी  से घड़ा बनाता है तब घड़े का उपादान  कारण (Material Cause )मिट्टी तथा नैमित्तिक यानी इंटेलिजेंट या एफ्फिसिएंट कॉज कुम्हार को समझा जाता है। यानी कुम्हार और उसकी सृष्टि घड़ा दो अलग अलग चीज़ें हैं। कुम्हार अपने घर पर है उसका बनाया घड़ा बाज़ार में या कहीं और आ गया है। 

लेकिन सृष्टि के मामले में सृष्टि का उपादान और नैमित्तिक कारण ईश्वर ही है।वह ईश्वर सारी  सृष्टि में व्याप्त है। 

ज्ञानातीत (ध्यानातीत ,इन्द्रियातीत )है अव्यक्त ब्रह्म और उसका प्रकट या सगुण  रूप ईश्वर है । माया को कुछ लोग सृष्टि का उपादान कारण मानते हैं लेकिन माया ईश्वर से अलग नहीं है ईश्वर की है एक दिव्य शक्ति है। शक्ति शक्तिमान से अलग नहीं है। सृष्टि का प्राकट्य और विलय हिंदुत्व की अवधारणाओं के अनुसार एक आवधिक घटना है। सृष्टि बनती बिगड़ती रहती है। यानी व्यक्त रूप ब्रह्म का पुन :अव्यक्त हो जाता है। पुन : अव्यक्त से व्यक्त अनादिकाल से यही क्रम चला आया है। चलता रहेगा ,चला है। 

A CYCLICAL UNIVERSE

From the Hindu perspective, all processes in the Universe are cyclical "Divine being , like a sea ,surges upward in a wave of creation ,then subsides again into its own nature .Waves of universe rise incessantly , in infinite numbers ,one after another ." (YOGA VASISHTHA 2:19)


ONE GOD (SUPREME CONSCIOUSNESS )MANIFESTING IN MANY FORMS 

DIVINE CONSCIOUNESS EVEYWHERE 


ईशावास्यं इदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।

यानी:

 Divine Consciousness permeates all matter in the Universe. 

SANATAN DHARMA IS RECEPTIVE TO ALL KNOWLEDGE 

इसीलिए सर्वसमावेशी कहा गया है। 

आनो भद्रा : क्रतवो यन्तु विश्वत: 

Let noble thoughts come from all directions .  

Essence of Hindu Dharma

साधना में  धृति (धीरता  ,सहन शक्ति ,धैर्य ),दम (इन्द्रिय नियंत्रण ),संयम ,नियम (धर्मानुकूल आचार व्यवहार  )सत्य की अनुभूति की ओर  व्यक्ति को ला सकते हैं।साधना अपने निज स्वरूप (आत्मन )से साक्षात्कार का पहला कदम है। 


Dhriti (fortitude ,patience )in Sadhana (life governed by spiritual practice ),guided by damah (self -control ) and indriya nigrah (sense control )leads to realization of satya (eternal truths). 

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