हिंदुत्व :कुछ मूल भूत अवधारणाएं ( ETERNAL ESSENTIAL HINDUISM )(Cont... )
PRAYERS FOR THE WELL BEING OF ALL
सबके सुख की कामना ,प्रार्थना करता है हिंदुत्व उस परमप्रभु से :
सर्वेपि सुखिन : सन्तु
परमात्मा से प्रार्थना है सब खुश रहें ,आनंद -बदन रहें।
HARMONY AT ALL LEVELS OF EXISTENCE
Perfecting the individual ,then family ,then the universe itself.
यानी पहले स्व : का कल्याण हो व्यक्ति अपने निज स्वरूप आत्मन को पहचाने। उसका लक्ष्य क्या है ,समझे तदनुरूप आचरण करे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए।
स्व : की पूर्णता के बाद स्व : के पूर्णकाम आप्तकाम होने के बाद परिवार इस दिशा में अग्रसर हो और अनन्तर सृष्टि को इसी दिशा में ले जाया जाए।
SECTS
मुख्या तय चार सम्प्रदाय हैं हिन्दुइस्म के अंतर्गत माने गए हैं :
शिव को मान ने वाले 'शैव' ,शक्ति की उपासना अर्चना करने वाले 'शाक्त ' ,विष्णु उपासक यानी 'वैष्णव सम्प्रदाय'। तथा 'Smartism' यानी पंचदेव पूजक।
Smartism is a sect of Hinduism that allows its followers to worship more than one god, unlike in sects like Shaivism and Vaishnavism, in which only Shiva and Vishnu are worshipped, respectively.
यानी बहुदेव उपासक हैं इस सम्प्रदाय के लोग इस सम्प्रदाय के अनुयायी कोई किसी को भी भजे पूजे कोई पाबंदी नहीं।
पंचायतन भी कहलाते हैं इस सम्प्रदाय के समर्थक क्योंकि ये पांच देवों विष्णु ,शिव ,गणेश ,सूर्य और शक्ति में से किसी को भी पूज सकते हैं।
Hinduism accepts all genuine spiritual paths -from pure monism (एक देववाद या एक ईश्वर को मानने वाले )(God alone exists )to theistic dualism (when shall I know His grace ?).Each soul is free to find his own way ,whether by devotion ,austerity ,meditation (yoga )or selfless service .
अगर आप किसी भी देवता को नहीं मानते न एक देव न बहुदेव पूजक हैं नास्तिक हैं आप तब भी यहां हिन्दू ही हैं।
अलबत्ता मंदिर में जाकर पूजा -अर्चना करना ,आध्यात्मिक ग्रंथों का अनुशीलन करना ,गुरु -शिष्य परम्परा के अंतर्गत अपने निज स्वरूप को पहचान ने के लिए गुरु के शरणागत होना हिंदुत्व में महत्वपूर्ण माना गया है अपने आत्मिक उद्धार के लिए।
उत्सव- धर्मिता ,तीर्थ स्थानों का भ्रमण ,मंत्र जाप ,पूजा अर्चना घर में ही नियमित रूप से करना हिंदुत्व की गत्यात्मक अवधारणाएं रहीं हैं।हमारे जड़त्व को तोड़ने में इनकी विधायक भूमिका समझी गई है।
प्रेम ,अहिंसा ,सौहाद्र ,आचरण की शुचिता मन क्रम वचन से ,सबके प्रति सद्भावना रखना बनाये रखना कठिन परिश्थितियों में भी हिंदुत्व की आत्मा समझी गई है।
हिंदुत्व के अंतर्गत ऐसा समझा जाता है की हमारी शेष कामनाएं ही हमें इस संसार चक्र में बार बार ले आती हैं :
पुनरपि जन्मम पुनरपि मरणम ,
पुनरपि जननी जठरे शयनम।
पूर्णकाम आप्त काम व्यक्ति जिसकी कोई कामना शेष नहीं रह जाती इस चक्र से बाहर आ जाता है अलबत्ता परमात्मा हर प्रकार की कामना को पूर्ण करने का अवसर बार-बार देता है जब तक के आप निष्काम न हो जाएँ। कामना मुक्त न हो जाएँ।
Hiduism explains that the soul re-incarnates until all accumulated karma are resolved and God realization is attained .
हम पूर्व में चर्चा कर चुके हैं गीता में निष्काम कर्म की चर्चा पूर्णकाम(आप्त काम ) होने के लिए ही की गई है। जब तक कर्मफल आसक्ति बनी हुई हैं कामनाएं शेष हैं संसार चक्र से मुक्ति नहीं है। बस आते रहो माँ के गर्भ में जाते रहो एक से दूसरे शरीरों में यौनियों में।
हमारे कर्म तीन प्रकार के बतलाये गए हैं :
'संचित -कर्म' :हमारे अनंत कोटि पूर्व जन्मों के कर्मफलों का जमा जोड़ हैं।
'प्रारब्ध -कर्म 'इन्हीं संचित कर्मों का एक अंश हैं जिनके साथ हम पैदा होते हैं।
तथा 'आगम -कर्म 'वर्तमान में किये गए क्रियमाण कर्मों में से वे कर्म हैं जिनका फल हम को इस जन्म में नहीं मिला है आगे जाकर कभी मिलेगा। अगले जन्मों में से किसी में। अलबत्ता कर्म करने की पूर्ण स्वतंत्रता है ये करूँ या वो करूँ।
(ज़ारी )
PRAYERS FOR THE WELL BEING OF ALL
सबके सुख की कामना ,प्रार्थना करता है हिंदुत्व उस परमप्रभु से :
सर्वेपि सुखिन : सन्तु
परमात्मा से प्रार्थना है सब खुश रहें ,आनंद -बदन रहें।
HARMONY AT ALL LEVELS OF EXISTENCE
Perfecting the individual ,then family ,then the universe itself.
यानी पहले स्व : का कल्याण हो व्यक्ति अपने निज स्वरूप आत्मन को पहचाने। उसका लक्ष्य क्या है ,समझे तदनुरूप आचरण करे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए।
स्व : की पूर्णता के बाद स्व : के पूर्णकाम आप्तकाम होने के बाद परिवार इस दिशा में अग्रसर हो और अनन्तर सृष्टि को इसी दिशा में ले जाया जाए।
SECTS
मुख्या तय चार सम्प्रदाय हैं हिन्दुइस्म के अंतर्गत माने गए हैं :
शिव को मान ने वाले 'शैव' ,शक्ति की उपासना अर्चना करने वाले 'शाक्त ' ,विष्णु उपासक यानी 'वैष्णव सम्प्रदाय'। तथा 'Smartism' यानी पंचदेव पूजक।
Smartism is a sect of Hinduism that allows its followers to worship more than one god, unlike in sects like Shaivism and Vaishnavism, in which only Shiva and Vishnu are worshipped, respectively.
यानी बहुदेव उपासक हैं इस सम्प्रदाय के लोग इस सम्प्रदाय के अनुयायी कोई किसी को भी भजे पूजे कोई पाबंदी नहीं।
पंचायतन भी कहलाते हैं इस सम्प्रदाय के समर्थक क्योंकि ये पांच देवों विष्णु ,शिव ,गणेश ,सूर्य और शक्ति में से किसी को भी पूज सकते हैं।
Hinduism accepts all genuine spiritual paths -from pure monism (एक देववाद या एक ईश्वर को मानने वाले )(God alone exists )to theistic dualism (when shall I know His grace ?).Each soul is free to find his own way ,whether by devotion ,austerity ,meditation (yoga )or selfless service .
अगर आप किसी भी देवता को नहीं मानते न एक देव न बहुदेव पूजक हैं नास्तिक हैं आप तब भी यहां हिन्दू ही हैं।
अलबत्ता मंदिर में जाकर पूजा -अर्चना करना ,आध्यात्मिक ग्रंथों का अनुशीलन करना ,गुरु -शिष्य परम्परा के अंतर्गत अपने निज स्वरूप को पहचान ने के लिए गुरु के शरणागत होना हिंदुत्व में महत्वपूर्ण माना गया है अपने आत्मिक उद्धार के लिए।
उत्सव- धर्मिता ,तीर्थ स्थानों का भ्रमण ,मंत्र जाप ,पूजा अर्चना घर में ही नियमित रूप से करना हिंदुत्व की गत्यात्मक अवधारणाएं रहीं हैं।हमारे जड़त्व को तोड़ने में इनकी विधायक भूमिका समझी गई है।
प्रेम ,अहिंसा ,सौहाद्र ,आचरण की शुचिता मन क्रम वचन से ,सबके प्रति सद्भावना रखना बनाये रखना कठिन परिश्थितियों में भी हिंदुत्व की आत्मा समझी गई है।
हिंदुत्व के अंतर्गत ऐसा समझा जाता है की हमारी शेष कामनाएं ही हमें इस संसार चक्र में बार बार ले आती हैं :
पुनरपि जन्मम पुनरपि मरणम ,
पुनरपि जननी जठरे शयनम।
पूर्णकाम आप्त काम व्यक्ति जिसकी कोई कामना शेष नहीं रह जाती इस चक्र से बाहर आ जाता है अलबत्ता परमात्मा हर प्रकार की कामना को पूर्ण करने का अवसर बार-बार देता है जब तक के आप निष्काम न हो जाएँ। कामना मुक्त न हो जाएँ।
Hiduism explains that the soul re-incarnates until all accumulated karma are resolved and God realization is attained .
हम पूर्व में चर्चा कर चुके हैं गीता में निष्काम कर्म की चर्चा पूर्णकाम(आप्त काम ) होने के लिए ही की गई है। जब तक कर्मफल आसक्ति बनी हुई हैं कामनाएं शेष हैं संसार चक्र से मुक्ति नहीं है। बस आते रहो माँ के गर्भ में जाते रहो एक से दूसरे शरीरों में यौनियों में।
हमारे कर्म तीन प्रकार के बतलाये गए हैं :
'संचित -कर्म' :हमारे अनंत कोटि पूर्व जन्मों के कर्मफलों का जमा जोड़ हैं।
'प्रारब्ध -कर्म 'इन्हीं संचित कर्मों का एक अंश हैं जिनके साथ हम पैदा होते हैं।
तथा 'आगम -कर्म 'वर्तमान में किये गए क्रियमाण कर्मों में से वे कर्म हैं जिनका फल हम को इस जन्म में नहीं मिला है आगे जाकर कभी मिलेगा। अगले जन्मों में से किसी में। अलबत्ता कर्म करने की पूर्ण स्वतंत्रता है ये करूँ या वो करूँ।
(ज़ारी )
Comments
Post a Comment