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Sacred Scriptures (Part ll ,Hindi )

स्मृति ग्रंथ ?स्मृति ग्रंथों में श्रीमद्भागवद्गीता को अग्रणी ग्रंथ माना गया है। स्मृति ग्रंथ शाश्वत सिद्धांतों को व्यवहार में उतारने का साधन हैं।इन अर्थों में  भागवद्गीता जीवन का विज्ञान है जिसमें कृष्ण  देह और देह के संबंधों में मोहग्रस्त हुए अर्जुन को जो  अपने क्षात्र(क्षत्रिय ) धर्म से विमुख हो जाता है  उसके निजस्वरूप (आत्म स्वरूप )का बोध कराते हैं यह कहते हुए के यह 'आत्मन' न तो किसी को मारता ही है और न किसी के द्वारा मारा जाता है।

बौद्ध धर्म के तहत धम्मपद तथा तृप्तिका (तृप्तिकाओं ) को स्मृति ग्रंथ के अंतर्गत ही रखा जाएगा। यही स्थिति जैन धर्म में 'कल्पसूत्र' की तथा सिक्ख धर्म  में 'श्री गुरुग्रंथ साहब' और श्री गुरुगोविंद सिंह कृत 'दशम  ग्रंथ'की है। दोनों ही स्मृति ग्रंथ हैं। 
पुराण भी स्मृति ग्रंथ के अंतर्गत आएंगे। इनमें वेद की प्रमुख शिक्षाओं एवं सिद्धांतों को रोचक कथाओं और मिथकों के माध्यम से समझाया गया है।यहां  महापुरुषों के चरित्रों के बखान  का भी ध्येय यही रहा है।
'उप -पुराण' भी यही काम करते हैं जो संख्या में कुछ के मुताबिक़ अठारह तथा  कुछ और अन्यों  के मुताबिक़ ४६ बतलाये गए हैं। 

आगम ग्रंथ भी स्मृति ग्रंथ हैं जिनमें चर्चा है :
(१ )'शाक्त' (शक्ति के उपासक )
(२ )'शैव' (शिव भक्त )
(३ )'वैष्णव' (विष्णु भक्त वैष्णव कहाये हैं )तथा 
(४ )'जैन' की 

(ज़ारी )

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अपने -अपने आम्बेडकर          ---------वीरुभाई  आम्बेडकर हैं सब के अपने , अपने सब के रंग निराले , किसी का लाल किसी का नीला , किसी का भगवा किसी का पीला।  सबके अपने ढंग निराले।  नहीं राष्ट्र का एक आम्बेडकर , परचम सबके न्यारे , एक तिरंगा एक राष्ट्र है , आम्बेडकर हैं सबके न्यारे।  हथियाया 'सरदार ' किसी ने , गांधी सबके प्यारे।  'चाचा' को अब कोई न पूछे , वक्त के कितने मारे। 

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फिलाल (कांग्रेस में दूसरे दिन भी सुलगी चिठ्ठी की चिंगारी ,२६ अगस्त २०२० अंक )का साफ संकेत है ,पार्टी चिरकुट और गैर -चिरकुटों में बटती बिखरती  दिख रही है।झाड़ू की तीलियों को समेटना अब मुश्किल लग रहा है।  जो पार्टी चार पांच आदमियों (सदस्यों )की कमिटी भी बनाने में ऊँघ रही है उसमें नेतृत्व कैसा और कहाँ है ?किसी को गोचर हो तो हमें भी खबर करे।  डर काहे का अब खोने को बचा क्या है ?माँ -बेटे चिरकालिक हैं बहना को घास नहीं। जीजा जी परिदृश्य से बाहर हैं।  जयराम रमेश ,शशि  थरूर साहब ,कपिल सिब्बल ,मनीष तिवारी ,मुकुलवासनिक साहब ,नबी गुलाम आज़ाद साहब चंद नाम हैं जिनका अपना वज़ूद है ,शख्सीयत भी।  इनमें फिलाल कोई चिरकुट भी नहीं है।  राहुल को तो इस देश का बच्चा भी गंभीरता से नहीं लेता। हंसना हंसाना बाहें चढ़ाना उनकी राष्ट्रीय स्तरीय मसखरी का अविभाज्य अंग है।  पार्टी का टाइटेनिक न डूबे बना रहे हम भी यही चाहते हैं। ये दिखाऊ  जंगी जहाज बन के...

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