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Showing posts from October, 2018

Stress might lead to memory loss and brain shrinkage, study says

Story highlights High levels of stress hormones are linked to memory loss, study says Effects are evident in mid-life years, before symptoms appear (CNN) Listen up, gen-Xers and millennials, and, well, everybody who has a brain. If you live a high-stress life, you could have memory loss and brain shrinkage before you turn 50, according to a study published Wednesday in the journal Neurology. "Higher levels of cortisol, a stress hormone, seem to predict brain function, brain size and performance on cognitive tests," said study author Dr. Sudha Seshadri, professor of neurology at UT Health San Antonio. "We found memory loss and brain shrinkage in relatively young people long before any symptoms could be seen," Seshadri said. "It's never too early to be mindful of reducing stress." Too much 'flight or fight' Keeping your brain fit, by a USA Memory Champion Cortisol is one of the body's key stress ...

अकर्म एवं भक्ति, SI-11, by shri Manish Dev ji (Maneshanand ji) Divya Srijan Samaaj

सन्दर्भ -सामिग्री :https://www.youtube.com/watch?v=otOjab3ALy4 जो अकर्म  में कर्म को और कर्म में अकर्म को देख लेता है बुद्धिमान वही है। भगवान् अर्जुन को अकर्म और कर्म के मर्म को समझाते हैं। कर्म जिसका फल हमें प्राप्त  होता है वह है और अकर्म  वह जिसका फल हमें प्राप्त नहीं होता है।   वह योगी सम्पूर्ण  कर्म करने वाला है जो इन दोनों के मर्म को समझ लेता है।  अर्जुन बहुत तरह के विचारों से युद्ध क्षेत्र में ग्रस्त है । युद्ध करूँ न करूँ।  सफलता पूर्वक  कर्म करना है तो इस रहस्य को जान ना ज़रूरी है। अकर्म  वह है -जिसका फल प्राप्त नहीं होता। जो कर्म अनैतिक है जिसे नहीं करना चाहिए वही विकर्म है।वह कर्म जो नहीं करना चाहिए जो निषेध है वह विकर्म है।  जिस दिन कर्म और अकर्म का भेद समझ आ जाएगा। मनुष्य का विवेक जागृत होगा उसी दिन भक्ति होगी।तब जब घोड़े वाला चश्मा हटेगा और उसके स्थान पर विवेक का चश्मा लगेगा।    भगवान् अर्जुन से कहते हैं :हे अर्जुन !तू कर्म अकर्म और विकर्म के महत्व को मर्म को जान तभी तेरे प्रश्नों का समाधा...

शशि थरूर का #Metoo Shashi Tharoor Ka #Metoo

शशि थरूर का #Metoo  यदि किसी कहानी कथा का आरम्भ उसका प्रवेश द्वार है तो कहानी या पोस्ट का शीर्षक उस द्वार पर लिखा सुस्वागतम है। स्वागत है शशि थरूर जी आपका। आप भारत देश को समझा रहें हैं श्रेष्ठ हिन्दू ,श्रेष्ठ मुसलमान ,श्रेष्ठ ईसाई ,श्रेष्ठ बौद्ध ,श्रेष्ठ सिख ,श्रेष्ठ पारसी ,बनिया ,ब्राह्माण,शूद्र कौन ? (१ )पूछा जा सकता है क्या हिन्दू को आत्मा रक्षा का अधिकार नहीं है ? (२ )क्या मंदिर तोड़के मस्जिद बनाने वाला मुसलमान श्रेष्ठ है ? (३ )क्या वह मुसलमान श्रेष्ठ है जिसे भारत देश को तोड़ने के कामों में खर्ची के लिए हवाला से पैसा आ रहा है ? (४ )घाटी में अलगाव वादियों का समर्थन करने  वाला हिन्दू या मुसलमान श्रेष्ठ है ? (५ )वह हिन्दू श्रेष्ठ है जो नेहरू की तरह अपनी बीवी को तपेदिक में छोड़ के भाग गया था उसके पास समय नहीं था ? (६ )वह थरूर श्रेष्ठ है जिसने बीवी को आत्महत्या के कगार पे ले जाकर छोड़ दिया जबकि वह पहले  से अवसाद ग्रस्त थी,बायकायदा उसका इलाज़ भी चल रहा था ?  वह जुल्फिकार अली भुट्टो श्रेष्ठ थे जो कहते थे भारत के सीने पे घाव करते चलो हज़ार हज़ार। क्या आ...

ई तन जीयत न जारो ,जोबन ज़ारि युक्ति तन पारो ...... (कबीर बीजक से )

ई तन जीयत  न जारो ,जोबन जारि युक्ति तन पारो -------(कबीर बीजक से ) कबीर कहते हैं जीते जी इस शरीर को घोर तपस्या में जलाओ मत। जवानी का जो प्रमाद है अहंकार है यहां जो काम आदिक की वासनाएं उड़ती हैं इनको जलाओ और इस संसार से पार होने के लिए युक्ति पूर्वक साधना करो।  शरीर को जलाने से मोक्ष नहीं मिलने वाला है। लोग भ्रम में पड़कर घोर काया कष्ट करते हैं। मौन धारण करते हैं ,जल शयन करते हैं। शरीर को तपाने से ऊर्ध्व बाहु हो सालों साल जल में या फिर  धूप में खड़े रहने से सूरज को ताकते रहने से कुछ नहीं होने वाला है।ये सिर्फ काया कष्ट है।अज्ञान है ऐसा तप।   पाप कटने वाले नहीं हैं इस काया कष्ट से।  ये मात्र दिखावा या प्रदर्शन ,मशहूरी पाने का ज़रिया हो सकता है रिद्धि सिद्धि भी मिल जाएं कोई आश्चर्य नहीं लेकिन इससे कोई जन -कल्याण नहीं होने वाला है न खुद को ही कोई फायदा होने वाला है। इसलिए हट छोड़ो साधना का मध्यम  मार्ग अपनाओ।प्रकृति के नियमों के अनुरूप जो शरीर के लिए मुफीद हो वैसा भोजन करो। लम्बे लम्बे उपवास रखने से कुछ नहीं होने वाला है। जलाहार और सूर्य स्...

सरगुन की कर सेवा ,निर्गुण का कर ज्ञान। सरगुन निर्गण ते परे तहाँ हमारा ध्यान।

सरगुन की कर सेवा ,निर्गुण का कर ज्ञान।  सरगुन निर्गण ते (से )परे तहाँ हमारा ध्यान। कबीर कहते हैं हे मनुष्य तेरे बाहर सरगुन(सगुण ) है भीतर निर्गुण है। सब प्राणी सरगुन भगवान् है। चेतना का दीपक अंदर जल रहा है वह निर्गुण है। नर नारायण रूप है इसे देह मत समझ देह तो मिट्टी का खोल है। कबीर जेते  आत्मा  ,तेते शालिग्राम। कबीर कहते हैं अर्थात जितने भी प्राणी है सब भगवान हैं   कबीर कहते हैं सगुन की सेवा करो निर्गुण का ज्ञान प्राप्त करो लेकिन हमारा ध्यान दोनों से परे होना चाहिए सरगुन श्रेष्ठ है या निर्गुण इस फ़िज़ूल बात में नहीं उलझना है।  सारा सृजन मनुष्य करता है ज्ञान विज्ञान का रचयिता वह स्वयं  है। देवताओं को उसने ही बनाया है वेदों की प्रत्येक ऋचा के साथ उसके ऋषि का नाम है छंद का नाम है। किताब ,किसी भी धार्मिक किताब (कतैब )का रचयिता भगवान नहीं है सारे देवता मनुष्य ने बनाये हैं उसी की कल्पना से उद्भूत हुए हैं यह ज्ञान है। इसे ही समझना है।  आज जो देवी देवता पूजे जाते हैं वह वैदिक नहीं हैं। राम ,कृष्ण ,गणेश आदिक इनका कहीं उल्लेख नह...