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ई तन जीयत न जारो ,जोबन ज़ारि युक्ति तन पारो ...... (कबीर बीजक से )


ई तन जीयत  न जारो ,जोबन जारि युक्ति तन पारो -------(कबीर बीजक से )

कबीर कहते हैं जीते जी इस शरीर को घोर तपस्या में जलाओ मत। जवानी का जो प्रमाद है अहंकार है यहां जो काम आदिक की वासनाएं उड़ती हैं इनको जलाओ और इस संसार से पार होने के लिए युक्ति पूर्वक साधना करो। 

शरीर को जलाने से मोक्ष नहीं मिलने वाला है। लोग भ्रम में पड़कर घोर काया कष्ट करते हैं। मौन धारण करते हैं ,जल शयन करते हैं। शरीर को तपाने से ऊर्ध्व बाहु हो सालों साल जल में या फिर  धूप में खड़े रहने से सूरज को ताकते रहने से कुछ नहीं होने वाला है।ये सिर्फ काया कष्ट है।अज्ञान है ऐसा तप।   पाप कटने वाले नहीं हैं इस काया कष्ट से।  ये मात्र दिखावा या प्रदर्शन ,मशहूरी पाने का ज़रिया हो सकता है रिद्धि सिद्धि भी मिल जाएं कोई आश्चर्य नहीं लेकिन इससे कोई जन -कल्याण नहीं होने वाला है न खुद को ही कोई फायदा होने वाला है। इसलिए हट छोड़ो साधना का मध्यम  मार्ग अपनाओ।प्रकृति के नियमों के अनुरूप जो शरीर के लिए मुफीद हो वैसा भोजन करो। लम्बे लम्बे उपवास रखने से कुछ नहीं होने वाला है। जलाहार और सूर्य स्नान से पेट भरने वाले   करिश्माई लोग आपने देखे सुने होंगें। मुझे भी एक ऐसे ही हट योगी को देखने का एक मौक़ा नै दिल्ली स्थित भारतीय परिवास केंद्र (India Habitat Center )में एक बार मिला था ११३ दिनों तक सूरज से प्राप्त गर्मी (सौर ऊर्जा )ही उसका भोजन बनी रही थी।लेकिन  समाज के वृहत्तर हित ऐसे करतबों से कहाँ सधते हैं।

अलबत्ता गिनीज़ बुक में इन महाशय का नाम ज़रूर शरीक हो चुका है। 

कबीर इसे बाहरी करम काण्ड से अधिक और कुछ नहीं मानते। मशहूरी का रास्ता हो सकता है यह मोक्ष का नहीं है। आवाजाही इस संसार में इन सिद्धियों से जाने वाली नहीं हैं। कालचक्र ज़ारी रहेगा :

पुनरपि जन्मम पुनरपि मरणम। 

पुनरपि जननी जठरे शयनम। 

मोक्ष का रास्ता तो साधना का ही रास्ता है। तपस्या दिखाऊ होती है। भड़काऊ भी। तपस्या सकाम होती है किसी कामना को लेकर ही होती है। सावधान न रहें तो तपस्वी में क्रोध की मात्रा ज्यादा बढ़ती है। ज़रा सा उसके मन के कुछ प्रतिकूल होने पर क्रोध भभक पड़ता है उसका। तपस्या कल्याण का रास्ता नहीं है क्रोध और कामना ही इसका हासिल है। बड़े बड़े तपस्वी क्रोध में आकर श्राप देते सुने गए हैं। बस इनके अहंकार के खिलाफ आप थोड़ा सा भी कुछ कह दीजिये। 

जलाना ही है तो जवानी में जो वासना की प्रबलता होती है उसे जलाओ और युक्ति पूर्वक साधना करो जो मध्यम मार्ग है। सहज अपनाने योग्य है । साधना दिखती नहीं है भोग दिखता है। तपस्या भी दिखती है। 

भोगी पैसे का लालची होता है तपस्वी दूसरे छोर पर खड़ा है वह पैसे को छूता भी नहीं है। साधक इसका सदुपयोग करता है। लोभ नहीं करेगा साधक पैसे का। उसके प्रति मोह नहीं करेगा अहंकार भी नहीं करेगा। देखो मेरे पास कितना है मैं भी मुकेश अम्बानी से कम  नहीं हूँ। पैसा आएगा तो वह उसे सेवा में लगाएगा उसका सदुपयोग करेगा।पेटू भोगी होता है रसना का गुलाम होता है स्वाद स्वाद में जरूरत से ज्यादा खा जाता है।गले तक ठूस ठूस कर खा जाता है मनपसंद खाना दिखना भर  चाहिये उसे। ये भोग का लक्षण है। 

 सूखी रोटी हो या मिठाई हो और या फिर कोई पकवान हो साधक संतुलित मात्रा में खायेगा। जरूरत के मुताबिक़ खायेगा।उतना खायेगा जिससे शरीर का गुजर हो जाए। साधक (योगी )संतुलित खाता है निष्काम भाव से खाता है। उसे लोग देखते ही नहीं है। 

जो खूब खाता है और जो बिलकुल नहीं खाता दोनों दिखते हैं साधक अज्ञात अगोचर बना रहता है।

साधना का  मार्ग माध्यम मार्ग है जिसमें न भोग है न दिखावा।साधना मंथर गति से चलती है जिसे आदमी ताउम्र करते रह सकता है। ये साधना ही कल्याण का रास्ता होता है। 
अति भोग और अति काया कष्ट दोनों ही बंधन के कारण बनते हैं :

सिद्धार्त गौतम बुद्ध तमाम ऐश्वर्य छोड़ भागे  थे ,अति काया कष्ट भोगने के बाद ही ग्यानी बने तब जब उन्हें इसकी निर्थरकता पता चली। फिर उन्होंने बीच का रास्ता ही अपनाया। 

कबीर साहब खुलकर साधना की वकालत करते हैं काया कष्ट के खिलाफ खड़े हैं कबीर। अनासक्त कर्म योगी हैं कबीर। कबीर  वासनाओं को जलाने  की बात करते हैं। युक्ति पूर्वक साधना करने की बात करते हैं। जवानी की ऊष्मा (ऊर्जा )भोग में लगने खर्च होने में बंधन बन जाती है ,साधना में लगने पर मुक्ति का कारण बन जाती है। जीवन मुक्ति का। माया के बीच में रहते माया से अलिप्त रहना है साधना का मार्ग। कहीं कुछ छोड़कर भागना नहीं है यहां। भोग की शक्ति योग में लगने पर जनकल्याण का कारण बन जाती है। अति भोगी आदमी स्वयं भी दुखी रहेगा दूसरे को भी करेगा। तपस्वी भी किसी  का कोई भला नहीं करता है। साधना ही सर्व -कल्याणकारी मार्ग है।साधना से ही जीवन ज्ञान के प्रकाश से आलोकित होगा। तन मन की साधना ही युक्ति पूर्वक की गई साधना है इसी पे चलने से जीवन   ज्ञान प्रकाश से आलोकित होता है। हट करने से मन की वासना शांत  नहीं होंगी।अनासक्त होकर शरीर की ज़रूरी आवश्यकता की पूर्ती करते रहो। ये साधना ही लाभदाई है।    

अति का भला न बोलना ,

अति की भली न चूप (चुप ).      

सन्दर्भ -सामिग्री :

(१ )https://www.youtube.com/watch?v=xjGGIMUKG60

(२ )Did you mean: kabeer beejak ramaini 15 Sant Dharmendra Sahab
KABIR BIJAK कबीर बीजक प्रवचन पूज्य धर्मेन्द्र साहेब जी KABIR PARAKH SANSTHAN PRITAM NAGAR ...


    


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