Skip to main content

तू घट घट अंतरि सरब निरन्तरि जी ,हरि एको पुरखु समाणा। इकि दाते इकि भेखारी जी सभि तेरे चोज़ विडाणा। |

तू घट घट अंतरि सरब निरन्तरि  जी ,हरि एको पुरखु समाणा। 

इकि दाते इकि भेखारी जी सभि तेरे चोज़ विडाणा।  | 

ये जो हर जीव के सांस की धौंकनी को चला रहा है यह वही है सदा वही है वही सबमें सारी  कायनात में समाया हुआ है सृष्टि के हर अंग की सांस को वही चला रहा है। ये जो दिख रहा है, के एक दान करने वाला अमीर है एक दान लेने वाला गरीब है ये सब उसका खेल है। अमीर अपने अज्ञान में अहंकारी बना हुआ है खुद को देनहार समझ रहा है और गरीब उसकी अमीरी को देख अपने अंदर हीन  भाव से ग्रस्त हो रहा है। जबकि :

देनहार कोई और है देत  रहत दिन रैन ,

लोग भरम मोपे  करत ताते नीचे नैन । 

   ....... ......किंग एन्ड संत  अब्दुर रहीम खाने खाना 

उद्धरण :तुलसी दास जी ने यह सवाल कविवर रहीम साहब से पूछा था-राजन  ये देने की रीत आपने कहाँ से सीखी जितनी ज्यादा दान की रकम बढ़ती जाती है उतने ही ज्यादा आपके नैन झुकते जाते हैं तब रहीम जी ने उक्त पंक्तिया कही थीं। 

आदमी बस इतना समझ ले ये सब उसका खेल है इस खेल में सबकी अलग अलग पोज़िशन है सबको अपनी पोज़िशन को सही तरीके से संभाले रहना है खेल खेलते रहना है। जैसे फ़ुटबाल के खेल में कोई गोलची है कोई हाल्फ बेक तो कोई फुलबैक और कोई फॉरवार्ड पोज़िशन में खेलते हैं वैसे ही इस पसारे का खेल खेला है वाह  गुरु ने। 

तूं आपे दाता आपे भुगता जी ,हउ तुधु बिनु अवरु न जाणा। 

सब तेरे ही विस्मय कारक कौतुक हैं मैं तो दांतों तले ऊँगली दबा के देख भर सकता हूँ। मैं तेरे सिवाय किसी और को नहीं जानता। 

तूं तूं तूं करते तू भया ,

मुझमे रहा न :हूँ"।  

देता भी तू है उसका उपभोक्ता भी तू ही है मैं तो उपभोग्य हूँ तेरा दिए भोग का भोगने वाला भी तू ही है। 

तूं पारब्रहमु बेअंतु बेअंतु बेअंतु जी ,तेरे किआ गुण आखि वखाणा। 

एक ब्रह्म है जो मेरी सांस की धौंकनी चला रहा हूँ उस सांस की जिसे मैं अपनी माने बैठा हूँ जबकि अंदर उसी का दिल धड़क रहा है वही बैठा है। वही सांस ले रहा है। 

एक पूरी कायनात की इस पूरे पसारे की धड़कन बना हुआ है जड़ की भी चेतन की भी। वही पारब्रह्म है। जो मेरे बाहर है। वो(ब्रह्म है ) लेकिन मेरे अंदर हैं। तेरी पारब्रह्म मैं थां मैं कैसे पाऊँ तू आदि अनंत अनील जुग जुग एको भेस। 

मैं इतना समर्थ कहाँ हूँ पासंग भरका भी कुछ तेरे अनंत   गुणों  का बखान कर सकूँ।   

जो सेवहि जो सेवहि तुधु जी ,जनु नानकु तिन क़ुरबाणा। 

अर्थात जो तेरी सेवा में लगे हुए हैं गुरु साहब कहते है : मैं उनके चरणों की धूल पे कुर्बान जाता हूँ उसे उठाकर माथे पे लगाता हूँ। 

आज का कलियुगी जीव उन गुरुओं से भी अपने को बड़ा मानता है (जो ये बार बार कहते दोहराते हैं श्री गुरु ग्रंथ साहब में जिसमें दसों गुरुओं की जोत झिलमिल है। )मैं तेरे सेवकों पर अपने को न्योछावर करता हूँ। चढ़ाता हूँ अपना "हूँ "हउमै।   

मनमुख इसे बनाये हुए है।   


Comments

Popular posts from this blog

कांग्रेस एक रक्त बीज

 कांग्रेस एक रक्त बीज  नेहरुवीय कांग्रेस ने आज़ादी के फ़ौरन बाद जो विषबीज बोया था वह अब वट -वृक्ष बन चुका है जिसका पहला फल केजरीवाल हैं जिन्हें गुणानुरूप लोग स्वामी असत्यानन्द उर्फ़ खुजलीवाल  एलियाज़ केज़र बवाल  भी कहते हैं।इस वृक्ष की जड़  में कांग्रेस से छिटकी तृणमूल कांग्रेस की बेगम बड़ी आपा हैं जिन्होंने अपने सद्कर्मों से पश्चिमी बंगाल के भद्रलोक को उग्र लोक में तब्दील कर दिया है।अब लोग इसे ममताबाड़ी कहने लगे हैं।  इस वृक्ष की मालिन एंटोनिओ मायनो उर्फ़ पौनियां गांधी हैं। इसे जड़ मूल उखाड़ कर चीन में रूप देना चाहिए। वहां ये दिन दूना रात चौगुना पल्लवित होगा।   जब तक देस  में  एक भी कांग्रेसी है इस देश की अस्मिता अखंडता सम्प्रभुता को ख़तरा है।कांग्रेस की दैनिक ट्वीट्स हमारे मत की पुष्टि करने से कैसे इंकार करेंगी ?   

अपने -अपने आम्बेडकर

अपने -अपने आम्बेडकर          ---------वीरुभाई  आम्बेडकर हैं सब के अपने , अपने सब के रंग निराले , किसी का लाल किसी का नीला , किसी का भगवा किसी का पीला।  सबके अपने ढंग निराले।  नहीं राष्ट्र का एक आम्बेडकर , परचम सबके न्यारे , एक तिरंगा एक राष्ट्र है , आम्बेडकर हैं सबके न्यारे।  हथियाया 'सरदार ' किसी ने , गांधी सबके प्यारे।  'चाचा' को अब कोई न पूछे , वक्त के कितने मारे। 

How Delhi’s air pollution crisis may have origins in the Green Revolution

Punjab's early groundwater tubewell revolution enabled (read, entrenched) double-cropping in a big way as it fought to grow rice amid a harsh paddy-wheat cycle. Here's how it all happened. There is not much of a gap between the best time to sow wheat and harvest rice. Farmers, therefore, resort to simply burning residual stubble. | PTI For the past two years, the  burning of paddy stubble in Punjab  has occupied centre space in the discourse on Delhi’s toxic autumn smog. But barely four decades ago, Punjab was known neither as a producer nor as a consumer of rice. During the period identified with the Green Revolution in the late 1960s and 1970s, irrigation transformed the agricultural landscape of Punjab as it had nearly a century ago when the Raj first set up the canal colonies. Undivided Indian Punjab (which included Haryana before 1966) went from irrigating half its wheat land in 1961 to irrigating 86% in 1972, a feat all the more spectacular considerin...