अकलियत की मार्फ़त ये शासन करना चाहते हैं भारत धर्मी समाज पर। इस पटकथा का लेखन और मंचन किस्तों में होता रहा है भले गोधरा (पटकथा अंक १ )के मुज़रिम सज़ा पा गए लेकिन एक मलिका जिसे सब जानते हैं और जो एक बड़ी राजनीतिक पार्टी की अध्यक्ष कमोबेश रही आईं है दिमाग उसका था या गुजरात का इस मामले को एक बार इसका अन्वेषण करने के लिए फिर खोला जा सकता है। असली कुसूरवार नित नए गुल खिला रहें हैं। नागरिकता तो बहाना है असल काम अल्पसंख्यकों की आड़ में भारत को टुकड़ा टुकड़ा करने का रहा आया है इसी वजह से संविधानिक संस्थाओं को अदबदाकर तोड़ा और बदनाम किया जा रहा है काला कोट बनाम खाकी वर्दी उसका एक नमूना भर था। बाज़ जाने किस तरह हमसे ये बतलाता रहा , क्यों परिंदों के दिलों से उसका डर जाता रहा। मोदी को आये तो जुम्मा -जुम्मा आठ रोज़ हुए हैं :यह सिलसिला तो जयेन्द्र सरस्वती (भारत धर्मी समाज के एक प्रतीक पुरुष) -को कटहरे में घसीट कर लाने के साथ ही शुरू हो गया था। औरों को 'तू' खुद को 'आप 'कहने वाले 'आपिए ' अकेले शरीक नहीं रहें हैं इस साज़िश में इसमें वेमुला को आत्महत्या के...