Skip to main content

This religious segregation, the petitioners submitted, is without any reasonable differentiation and it is not only violates Article 14, but is also blatantly opposed to the Basic Structure of the Constitution. Supporters of CAA have argued that the exclusion of Muslims from the three countries is reasonable since Muslims are in a majority in the three countries and are hence not in danger of being persecuted for their faith.

शाहीन बाग़ से संविधान -शरीफ का पाठ :काठ का उल्लू बने रहने का कोई फायदा ?

नगर -नगर डगर- डगर हर पनघट पर  पढ़ा जा रहा है :संविधान शरीफ। ताज़्ज़ुब यह है ये वही लोग  हैं  जो केवल और केवल  क़ुरान शरीफ (क़ुरआन मज़ीद ,हदीस )के अलावा और किसी को नहीं  मानते -तीन तलाक से लेकर मस्जिद में औरत के दाखिले तक। ये वही मोतरमायें हमारी बाज़ी और खालाएँ जो हाथ भर का बुर्क़ा काढ़ लेती हैं घर से पाँव बाहर धरने से पहले।  
कैसे हैं ये खुदा के बन्दे जो जुम्मे की नमाज़ के फ़ौरन बाद हिंसा में मशगूल हो जाते हैं -नागरिकता तरमीम क़ानून के खिलाफ। 
कितना कौतुक होता है जब तीन साल की बच्ची से कहलवाया जाता है :आज़ादी आज़ादी लेके रहेंगे आज़ादी ज़िन्ना वाली आज़ादी। इस बालिका को क्या इसके वालिद साहब और अम्मीजान तक को इल्म नहीं होगा जिन्ना आखिर कौन था फिर वह तो पाकिस्तान चला गया था। (आप लोग भी आज़ाद हैं वहां जाने के लिए ). सब जानते हैं बंटवारा देश का उसी ने करवाया था यह कहकर मुसलमान हिंदू भारत के साथ नहीं रह सकता है। कितने ही उनके साथ चले भी गए थे।  उनकी मृत्यु के बाद १९४९ में ज़नाब लियाकत अलीखान (वज़ीरे खानम )ने ज़िन्ना के सेकुलर पाकिस्तान खाब को तोड़कर इसे इस्लामी घोषित कर दिया। गौर तलब है मार्च १९४९ के इस ओब्जेक्टिव्स रिज़ॉल्यूशन की हिमायत उस वक्त के कांस्टीटूएंट असेम्ब्ली के शिया और अहमदिया मेमब्रान ने भी  की थी। इसके बाद यहां से वहां गए इन मज़हबी मुसलमानों का क्या हुआ भारत क्या और क्यों जाने।अलबत्ता हिन्दुओं का जो उस और थे  ज़िम्मा  हमने तब भी लिया था  ये कहते हुए वहां सताये जाने पर आप यहां आ सकते हैं। नागरिकता इन्हीं अभागों को अब जाके दी जा रही है जिनकी संख्या वहां सिर्फ डेढ़ फीसद रह गई है.
संविधान शरीफ का हवाला देने वाले ये लोग न क़ुरआन की हिदायतों  आयतों से वाकिफ हैं  न संविधान की धाराओं से। 
शाहीन बागिया छब्बीस जनवरी से पहले अपना डेरा तम्बू खुद ही उखाड़  लें यही बेहतर है। इस मौके पर जबकि इंतिहा पसंद ,दहशत - गर्द किसी बड़ी वारदात की घात में हैं देश की सुरक्षा को यूं इन कानून को तोड़ने वालों के हवाले नहीं किया जा सकता। कहाँ  लिखा है किसी कतैब में आप सड़क रोक के तम्बू तान सकते हैं। दुधमुहों को ठंड में चौराहे पर आधे अधूरे इंतज़ामात ग़ुस्ल के करके छोड़ सकते हैं और लम्बी तान के खुद सो सकते हैं अपनी इज़्ज़त सड़क के हवाले  कर।पुलिस कब तक सम्हाल करे आपकी ?
शान्ति प्रिय सरकार और वृहत्तर भारत धर्मी समाज को आप यूं इम्तिहान न लें के हमें कहना पड़े :ज़ुल्म की मुझपे इन्तिहाँ कर दे ,मुझसा बे जुबां फिर मिले ,न मिले।

विशेष :अब जबकि देश की शीर्ष अदालत ने नागरिकता संशोधन क़ानून पर फौरी रोक लगाने से इंकार कर दिया है ,शाहीन बाग़ के मुख्य मार्ग को नागरिकता विरोधी प्रदर्शन कारियों को तत्काल प्रभाव से खाली करना चाहिए। काठ का उल्लू बने रहने से अब कोई लाभ नहीं होगा। आपका विरोध मेरे अज़ीमतर  भाइयो और बहनो दर्ज़ कर लिया गया है ज्यादा खींचने से विरोध की डोरी टूट जातीं है पतंग के मांझे की तरह लूट ली जाती है। सुतराम! खुदा हाफ़िज़ !
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा फादर आफ कमांडर निशांत शर्मा ,२४५ /२ ,विक्रम विहार ,शंकर विहार कॉम्प्लेक्स ,दिल्ली -छावनी ११० ०१०
८५ ८८ ९८ ७१५०
https://www.youtube.com/watch?v=-1JATDtdSdY

Comments

Popular posts from this blog

कांग्रेस एक रक्त बीज

 कांग्रेस एक रक्त बीज  नेहरुवीय कांग्रेस ने आज़ादी के फ़ौरन बाद जो विषबीज बोया था वह अब वट -वृक्ष बन चुका है जिसका पहला फल केजरीवाल हैं जिन्हें गुणानुरूप लोग स्वामी असत्यानन्द उर्फ़ खुजलीवाल  एलियाज़ केज़र बवाल  भी कहते हैं।इस वृक्ष की जड़  में कांग्रेस से छिटकी तृणमूल कांग्रेस की बेगम बड़ी आपा हैं जिन्होंने अपने सद्कर्मों से पश्चिमी बंगाल के भद्रलोक को उग्र लोक में तब्दील कर दिया है।अब लोग इसे ममताबाड़ी कहने लगे हैं।  इस वृक्ष की मालिन एंटोनिओ मायनो उर्फ़ पौनियां गांधी हैं। इसे जड़ मूल उखाड़ कर चीन में रूप देना चाहिए। वहां ये दिन दूना रात चौगुना पल्लवित होगा।   जब तक देस  में  एक भी कांग्रेसी है इस देश की अस्मिता अखंडता सम्प्रभुता को ख़तरा है।कांग्रेस की दैनिक ट्वीट्स हमारे मत की पुष्टि करने से कैसे इंकार करेंगी ?   

How Delhi’s air pollution crisis may have origins in the Green Revolution

Punjab's early groundwater tubewell revolution enabled (read, entrenched) double-cropping in a big way as it fought to grow rice amid a harsh paddy-wheat cycle. Here's how it all happened. There is not much of a gap between the best time to sow wheat and harvest rice. Farmers, therefore, resort to simply burning residual stubble. | PTI For the past two years, the  burning of paddy stubble in Punjab  has occupied centre space in the discourse on Delhi’s toxic autumn smog. But barely four decades ago, Punjab was known neither as a producer nor as a consumer of rice. During the period identified with the Green Revolution in the late 1960s and 1970s, irrigation transformed the agricultural landscape of Punjab as it had nearly a century ago when the Raj first set up the canal colonies. Undivided Indian Punjab (which included Haryana before 1966) went from irrigating half its wheat land in 1961 to irrigating 86% in 1972, a feat all the more spectacular considerin...

अपने -अपने आम्बेडकर

अपने -अपने आम्बेडकर          ---------वीरुभाई  आम्बेडकर हैं सब के अपने , अपने सब के रंग निराले , किसी का लाल किसी का नीला , किसी का भगवा किसी का पीला।  सबके अपने ढंग निराले।  नहीं राष्ट्र का एक आम्बेडकर , परचम सबके न्यारे , एक तिरंगा एक राष्ट्र है , आम्बेडकर हैं सबके न्यारे।  हथियाया 'सरदार ' किसी ने , गांधी सबके प्यारे।  'चाचा' को अब कोई न पूछे , वक्त के कितने मारे।