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THE ARUNDHATI VIRUS :SARS -COV-3


बान  हारे की बान न जाए ,कुत्ता मूते टांग उठाय

Habits die hard .

अरुंधति जी आप अपनी आदत से मजबूर हैं। इसे कहते हैं ऑब्सेसिव कम्पलसिव डिसॉर्डर -जब तक आप  भारत के वर्तमान राजनीतिक प्रबंध के खिलाफ विष वमन नहीं कर लेती तब तक  आपके दिमाग में  चंद न्यूरोट्रांसमीटर्स का स्तर कमतर बना रहता है इसके यथोचित हो जाने पर आपकी बे-चैनी कम हो जाती है। तमाम किस्म की मनो -बीमारियों का आधार ये बायो -मॉलिक्यूल्स ही हैं जिन्हें न्यूरो -ट्रांसमिटर्स कहा जाता है इनका स्तर या तो सामन्य से कम हो जाता है या अधिक ऐसे में न्यूरॉन -रिसेप्टर्स सेल्स को या तो उत्तेजित करतीं हैं मनो -रोग में प्रयुक्त दवाएं या फिर इनका शमन करती हैं प्रशांत करतीं हैं इन अभिग्राहियों को। अरुंधति जी को इलाज़ की जरूरत है।

सलाह मशविरा साइकोलॉजिकल कौन्सेलिंग का अपना असर होता है लेकिन असली काम दवाएं करतीं हैं एंटी -साइकोटिक /एंटी -न्यूरोलेप्टिक /एंटी -ऑब्सेसिव /एंटी -डिप्रेसिव आदिक  काम में ली जातीं हैं। अक्सर इन मनो -विकारों के लक्षण  ओवरलैप करते हैं परस्पर। बहर -सूरत हम अरुंधति बहन को बताना चाहेंगे -जो हमारे तब्लीगी जमाती भाई सार्स -कोव -२ से इलाज़ के बाद ठीक हो गए हैं वे इलाज़ करने वाले डॉक्टरों के लिए नमाज अता करके गए हैं। डीवियेन्ट बेहेवियर एक अपवाद होता है यह किसी भी समूह में देखा जा सकता है आपसे हाथ जोड़ के निवेदन हैं आप इलाज़ के लिए आगे आएं। सार्स -कोव -२   और सार्स -कोव -३ (अरुंधति वायरस )में कोई ख़ास फर्क नहीं हैं दोनों का इलाज़ एक ही है बहरसूरत आपको एंटी -साइकोटिक दवाएं भी देनी पड़ेंगी। आप ठीक हो जाएंगी तो एक बड़ी मुसीबत टल जायेगी।           



57-arundhati-royArundhati Roy

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