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कुम्भाराम या कुम्भकरण बतला रहें हैं मसखरा राहू

कुम्भाराम या कुम्भकरण बतला रहें हैं मसखरा राहू 

हाल ही में राजस्थान की एक चुनावी सभा में मसखरा राहु ने एक कुम्भकरण लिफ्ट योजना का दो बार ज़िक्र किया ,जब तीसरी बार अशोक गहलोत साहब ने इस मसखरे को टहोका मारते हुए फुसफुसाया -कुम्भाराम आर्य तब यह बोला कुम्भा योजना हमने आरम्भ की है। 

हम यह पोस्ट अपने अनिवासी भारतीयों को बा -खबर करने के लिए लिख रहें हैं ,कि मान्यवर यह व्यक्ति (मसखरा राहु ,शहज़ादा कॉल ,मतिमंद दत्तात्रेय आदिक नामों से ख्यात )जब आलू की फैक्ट्री लगवा सकता है इनके महरूम पिता श्री गन्ने के कारखाने लगवा सकते हैं तब यह  'कौतुकी -लाल' श्री लंका में सुदूर त्रेता -युग में कभी पैदा हुए कुंभकर्ण को आराम से कुम्भाराम का पर्याय बतला सकता है इसके लिए दोनों में कोई फर्क इसलिए नहीं है क्योंकि इन्हें और इनकी अम्मा को न इस देश के इतिहास का पता है और न भूगोल का और ये मतिमंद अबुध कुमार अपने आप को स्वयं घोषित भावी प्रधानमन्त्री मान बैठने का मैगलोमनिया पाले बैठा है। 

भारत धर्मी समाज का काम लोगों तक सूचना पहुंचाना है।हमने किसी से कोई लेना देना नहीं है अलबत्ता भारत धर्मी समाज को सचेत करते रहना हमारा धर्म है। हमारे लिए सब समान हैं।  

न काहू से दोस्ती न काहू से बैर ,
कबीरा खड़ा बाज़ार में सबकी चाहे खैर। 

विशेष :जल्दी ही आप पढ़ेंगे इनकी मातु श्री को कितने नामों से जाना जाता है कहीं वह सिग्नोरा गांधी हैं कहीं अंतोनियो मायनो , कहीं सोनिया गांधी। (http://newsloose.com/)कौन है क्रिश्चियन मिशेल क्या है सोनिया गांधी उर्फ़ सिग्नोरा गांधी से रिश्ता ,सन्दर्भ अगस्ता वैस्टलैंड हेलीकॉप्टर खरीद (२० १० )

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अपने -अपने आम्बेडकर          ---------वीरुभाई  आम्बेडकर हैं सब के अपने , अपने सब के रंग निराले , किसी का लाल किसी का नीला , किसी का भगवा किसी का पीला।  सबके अपने ढंग निराले।  नहीं राष्ट्र का एक आम्बेडकर , परचम सबके न्यारे , एक तिरंगा एक राष्ट्र है , आम्बेडकर हैं सबके न्यारे।  हथियाया 'सरदार ' किसी ने , गांधी सबके प्यारे।  'चाचा' को अब कोई न पूछे , वक्त के कितने मारे। 

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फिलाल (कांग्रेस में दूसरे दिन भी सुलगी चिठ्ठी की चिंगारी ,२६ अगस्त २०२० अंक )का साफ संकेत है ,पार्टी चिरकुट और गैर -चिरकुटों में बटती बिखरती दिख रही है।झाड़ू की तीलियों को समेटना अब मुश्किल लग रहा है

फिलाल (कांग्रेस में दूसरे दिन भी सुलगी चिठ्ठी की चिंगारी ,२६ अगस्त २०२० अंक )का साफ संकेत है ,पार्टी चिरकुट और गैर -चिरकुटों में बटती बिखरती  दिख रही है।झाड़ू की तीलियों को समेटना अब मुश्किल लग रहा है।  जो पार्टी चार पांच आदमियों (सदस्यों )की कमिटी भी बनाने में ऊँघ रही है उसमें नेतृत्व कैसा और कहाँ है ?किसी को गोचर हो तो हमें भी खबर करे।  डर काहे का अब खोने को बचा क्या है ?माँ -बेटे चिरकालिक हैं बहना को घास नहीं। जीजा जी परिदृश्य से बाहर हैं।  जयराम रमेश ,शशि  थरूर साहब ,कपिल सिब्बल ,मनीष तिवारी ,मुकुलवासनिक साहब ,नबी गुलाम आज़ाद साहब चंद नाम हैं जिनका अपना वज़ूद है ,शख्सीयत भी।  इनमें फिलाल कोई चिरकुट भी नहीं है।  राहुल को तो इस देश का बच्चा भी गंभीरता से नहीं लेता। हंसना हंसाना बाहें चढ़ाना उनकी राष्ट्रीय स्तरीय मसखरी का अविभाज्य अंग है।  पार्टी का टाइटेनिक न डूबे बना रहे हम भी यही चाहते हैं। ये दिखाऊ  जंगी जहाज बन के न रह जाए। वीरुभाई (वीरेंद्र शर्मा ,पूर्व प्राचार्य ,चोधरी धीरपाल पोस्टग्रेजुएट कॉलिज ,बादली (झज्जर )-१२४ -१०५ , हरियाणा