तू घट घट अंतरि सरब निरन्तरि जी ,हरि एको पुरखु समाणा। इकि दाते इकि भेखारी जी सभि तेरे चोज़ विडाणा। | ये जो हर जीव के सांस की धौंकनी को चला रहा है यह वही है सदा वही है वही सबमें सारी कायनात में समाया हुआ है सृष्टि के हर अंग की सांस को वही चला रहा है। ये जो दिख रहा है, के एक दान करने वाला अमीर है एक दान लेने वाला गरीब है ये सब उसका खेल है। अमीर अपने अज्ञान में अहंकारी बना हुआ है खुद को देनहार समझ रहा है और गरीब उसकी अमीरी को देख अपने अंदर हीन भाव से ग्रस्त हो रहा है। जबकि : देनहार कोई और है देत रहत दिन रैन , लोग भरम मोपे करत ताते नीचे नैन । ....... ......किंग एन्ड संत अब्दुर रहीम खाने खाना उद्धरण :तुलसी दास जी ने यह सवाल कविवर रहीम साहब से पूछा था-राजन ये देने की रीत आपने कहाँ से सीखी जितनी ज्यादा दान की रकम बढ़ती जाती है उतने ही ज्यादा आपके नैन झुकते जाते हैं तब रहीम जी ने उक्त पंक्तिया कही थीं। आदमी बस इतना समझ ले ये सब उसका खेल है इस खेल में सबकी अलग अलग पोज़िशन है सबको अपनी...