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Showing posts from August, 2018

तू घट घट अंतरि सरब निरन्तरि जी ,हरि एको पुरखु समाणा। इकि दाते इकि भेखारी जी सभि तेरे चोज़ विडाणा। |

तू घट घट अंतरि सरब निरन्तरि  जी ,हरि एको पुरखु समाणा।  इकि दाते इकि भेखारी जी सभि तेरे चोज़ विडाणा।  |  ये जो हर जीव के सांस की धौंकनी को चला रहा है यह वही है सदा वही है वही सबमें सारी  कायनात में समाया हुआ है सृष्टि के हर अंग की सांस को वही चला रहा है। ये जो दिख रहा है, के एक दान करने वाला अमीर है एक दान लेने वाला गरीब है ये सब उसका खेल है। अमीर अपने अज्ञान में अहंकारी बना हुआ है खुद को देनहार समझ रहा है और गरीब उसकी अमीरी को देख अपने अंदर हीन  भाव से ग्रस्त हो रहा है। जबकि : देनहार कोई और है देत  रहत दिन रैन , लोग भरम मोपे  करत ताते नीचे नैन ।     ....... ......किंग एन्ड संत  अब्दुर रहीम खाने खाना  उद्धरण :तुलसी दास जी ने यह सवाल कविवर रहीम साहब से पूछा था-राजन  ये देने की रीत आपने कहाँ से सीखी जितनी ज्यादा दान की रकम बढ़ती जाती है उतने ही ज्यादा आपके नैन झुकते जाते हैं तब रहीम जी ने उक्त पंक्तिया कही थीं।  आदमी बस इतना समझ ले ये सब उसका खेल है इस खेल में सबकी अलग अलग पोज़िशन है सबको अपनी...

Tap into Water Power :Avoid these hydration myths (HINDI I )

Your body runs efficiently only if your fluids are in harmony .Avoid these hydration myths to calibrate the balance correctly and you 'll supercharge your health .By Christopher Mohr ,Ph.D ;RD  Myth # 1  Hydration is a daily goal reached by drinking water . मिथकीय माया जाल में घिरा है हमारा पेय जल  यथार्थ  :खाली जल पीने  से वांछित जलीकरण नहीं होगा बॉडी चार्ज नहीं होगी। आपके जलीकरण का स्तर  अनेक बातों से तय होता है मसलन आपको पसीना कितना आता है ,आपका रोज़मर्रा का खाना पीना आपकी खुराक क्या है ?आप समुन्द्र से कितनी ऊंचाई पर रहते हैं वहां आद्रता (हवा में नमी )का स्तर क्या है।  याद रहे :स्वास्थ्यवर्धक हेल्दी खुराक आपकी रोज़मर्रा की पानी की ज़रूरियात का २० फीसद पूरा कर देती है।  तरबूज ,खीरा ,चकोतरा (grape fruit ),ब्रोक्क्ली ,सेव (एपिल्स )तथा अंगूर को अपनी दैनिकी के खानपान में जगह दीजिये।  पानी को सुस्वादु बनाने के लिए इसमें उपलब्ध फल काटके दाल लीजिये यथा बेरीज़ ,नीम्बू प्रजाति के फल ,कीवी ,संतरे ,पाइनेपल (अनानास )आदि को बराबर जगह देते रहिये...

परहित सरिस धर्म नहीं भाई। परपीड़ा सम नहीं, अधमाई।। (Serving Humanity is serving God in Hinduism)

हिंदुत्व में सेवा भाव की अवधारणा  "सर्वे भवन्तु सुखिन : सर्वे भवन्तु निरामया : सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुखभाग्भवेत। " अर्थात सब सुखी हो ,सब आरोग्यवान हों ,सब सुख को पहचान सकें ,कोई भी प्राणि किसी बिध दुखी न हो।  May all be happy ;May all be without disease ; May all see auspicious things ; May none have misery of any sort. सनातन  धर्म (हिंदुत्व ) सेवा को सबसे बड़ा धर्म मानता है।  परहित सरिस धर्म नहीं भाई।  परपीड़ा सम नहीं, अधमाई।।  सेवा यहां एक सर्व -मान्य सिद्धांत  है।मनुष्य का आचरण मन ,कर्म  ,वचन ऐसा हो जो दूसरे को सुख पहुंचाए। उसकी पीड़ा को किसी बिध कम करे। सेवा सुश्रुषा ही अर्चना है पूजा है: ईश्वर : सर्वभूतानां  हृदेश्यरजुन तिष्ठति।   जो सभी प्राणियों के हृदय प्रदेश में निवास करता है। सृष्टि के कण कण में उसका वास है परिव्याप्त है वही ईश्वर पूरी कायनात में जड़ में चेतन में। इसीलिए प्राणिमात्र की सेवा ईश सेवा ही है।  सेवा के प्रति हमारा नज़रिया (दृष्टि कौण )क्या हो कैसा हो यह महत्वपूर्ण है : तनमनध...

Hindus worship God in feminine form also (Hindi ,English )

हिंदुत्व में परमात्मा की शक्ति का प्राकट्य अनेकरूपा नारी है। दिव्य माँ के रूप में हिंदुत्व में ही नारी आराध्य देवीरूप में  है  विद्या ,ज्ञान-विज्ञान , ललित एवं संगीत अभिनय आदि कलाओं की देवी यहां सरस्वती हैं। सांगीतिक प्रस्तुतियों के पहले दीप प्रज्जवलित किया जाता है माँ सरस्वती का आवाहन करने के लिए।  लक्ष्मी तमाम वैभव और सम्पदा ,धन की दात्री है। आराध्या है सनातन धर्मी भारतधर्मी समाज की। दुर्गा और काली दुष्ट संहारक हैं।  अथर्व वेद की ऋचाओं का आरम्भ देवी उपासना से होता है : यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता (मनुस्मृति ) अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहां देवताओं का वास होता है देवगण विराजते हैं वहां।  तैत्तिरीय उपनिषद में आया है : मातृदेवो भव  Let your mother be God to you  माँ हमारे लिए परमात्मा की तरह  आराध्या है  मनुस्मृति का उद्घोष है : A family whose women live in sorrow perishes .The family whose women are happy always prospers .A household whose unhappy women members curse perishes completely -Manusmriti...

हिंदुत्व में ईश्वर सम्बन्धी अवधारणा :एकं सत् विप्रा : बहुधा वदन्ति (There is one ultimate reality (God ),known by many names -Rig Veda

हिंदुत्व में ईश्वर सम्बन्धी अवधारणा :एकं सत् विप्रा : बहुधा वदन्ति (There is one ultimate reality (God ),known by many names -Rig Veda  बतलाते हुए आगे बढ़ें -हिंदुत्व एक जीवन शैली का नाम है। सनातन धर्मी भारत धर्मी समाज के तमाम लोग हिन्दू कहाते हैं।  ईश्वर की अवधारणा में यहां पूर्ण प्रजातंत्र है। त्रिदेव की अवधारणा के तहत एक ही परमात्मा तीन रूपों में अलग अलग कर्मों का नैमित्तिक कारण माना गया है यही है त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु महेश की अवधारणा।   तैतीस कोटि (कोटि यानी प्रकार )देव हैं यहां। कुलजमा जोड़ ३३। देव का अर्थ गॉड नहीं है। यह अनुवाद की सीमा है। देव का पर्याय परमात्मा नहीं है देव ही है। जैसे  रिलिजन का रिलिजन ,धर्म का धर्म ही  पर्याय है। कोटि का गलत अर्थ करोड़ कर दिया गया है। संस्कृत भाषा का मूल शब्द है कोटि जिसके एकाधिक अर्थ हैं। तैतीस कोटि देवता यहीं से चलन में आया है तैतीस तरह को तैतीस करोड़ कर दिया गया एक अनुवाद के तहत।   One God fulfilling three different roles is often depicted as three in one . One Supreme Reality :Ishwara ,Bhagwan ...

हिंदुत्व :कुछ मूल भूत अवधारणाएं ( ETERNAL ESSENTIAL HINDUISM ) ,II PART

हिंदुत्व :कुछ मूल भूत अवधारणाएं  ( ETERNAL ESSENTIAL HINDUISM )(Cont... ) PRAYERS FOR THE WELL BEING OF ALL  सबके सुख की कामना ,प्रार्थना करता है हिंदुत्व उस परमप्रभु से : सर्वेपि सुखिन : सन्तु  परमात्मा से प्रार्थना है सब खुश रहें ,आनंद -बदन रहें।  HARMONY AT ALL LEVELS OF EXISTENCE  Perfecting the individual ,then family ,then the universe itself. यानी पहले स्व : का कल्याण हो व्यक्ति अपने निज स्वरूप आत्मन को पहचाने। उसका लक्ष्य क्या है ,समझे तदनुरूप आचरण करे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए।  स्व : की पूर्णता के बाद स्व : के पूर्णकाम आप्तकाम होने के बाद परिवार इस दिशा में अग्रसर हो और अनन्तर सृष्टि को इसी दिशा में ले जाया जाए। SECTS  मुख्या तय चार सम्प्रदाय हैं हिन्दुइस्म के अंतर्गत माने गए हैं : शिव को मान ने वाले 'शैव' ,शक्ति की उपासना अर्चना  करने वाले 'शाक्त ' ,विष्णु उपासक यानी 'वैष्णव सम्प्रदाय'। तथा 'Smartism' यानी पंचदेव पूजक।  Smartism  is a sect of  Hinduism  that allows its followers to worship more than...

हिंदुत्व :कुछ मूल भूत अवधारणाएं

हिंदुत्व :कुछ मूल भूत अवधारणाएं  ETERNAL ESSENTIAL HINDUISM  अनुयाइयों ने हिंदुत्व ,हिन्दू धर्म को वास्तव में सनातन  धर्म कहा  है।संख्या बल यानी अनुयाइयों की संख्या के हिसाब से यह विश्व का तीसरा बड़ा धर्म बतलाया गया है। इसका मतलब यह हुआ , विश्व का हर छटा व्यक्ति हिंदुत्व को  मान ने वाला है।   प्रागैतिहासिक समझा गया है  धरती के इस सबसे प्राचीन धर्म को। इसका कोई आदि हाथ नहीं आता। हमेशा रहा है यह।  ETERNAL TRUTH SANATAN DHARMA  मानवकृत पंथ नहीं है हिंदुत्व ,हिन्दू धर्म  वेदों से स्वत :प्रसूत एक धारा का नाम है जो सर्वसमावेशी  सर्वग्राही रही आई है। यह सनातन  धर्म संतों साधुओं के अनुभव में आया। साधना के दौरान यह उनकी अनुभूति का विषय बना। इसके अंतर्गत आप चर्चा करते हैं योग की ,आयुर्वेद ,वास्तु कला ,कर्म ,अहिंसा ,वेदांत जैसी अवधारणाओं की एवं ऐसे ही अन्य  विषयों की। यहां एक ही परमात्मा की अवधरणा है जिसका प्राकट्य अव्यक्त से व्यक्त की ओर  है अनेक रूपों में प्रकट हुआ है । यानी अव्यक्त ही व्यक्त हुआ...

Sacred Scriptures of Sanatan Dharma (HINDI )with systemetic details

हमारे पावन ग्रंथों को दो भागों में रखा जा सकता है : (१) श्रुति ग्रन्थ और  (२ )स्मृति ग्रंथ  श्रुतिग्रंथ शाश्वत सिद्धातों  का बखान करते हैं।स्मृतिग्रंथ इन सिद्धांतों के व्यावहारिक बर्ताव की बात करते हैं।  वेदों को श्रुति (ग्रंथ) भी कहा गया है क्योंकि इनका प्रसार श्रवण के द्वारा हुआ है।  वेदों को  कर्म काण्ड और ज्ञान काण्ड के तहत रखा जा सकता है।  (१ )संहिता और  (२ )ब्राह्मण ग्रंथों में कर्म काण्ड का   खुलासा  है। ज्ञान काण्ड को  (१ ) आरण्यक ग्रंथ और  (२ )उपनिषद विस्तार से समझाते हैं।   वेदों को सब सनातन धर्म के ग्रंथों का मूल माना गया है।इनका इहलाम,प्राकट्य ,प्रसव (Revelation ) ,साधना रत ऋषि मुनियों के हृदय  में हुआ। ऋषि कृष्ण द्वैपायन को इस शाश्वत विस्तार पाते ज्ञान को क्रमबद्ध  कर संयोजित और विभाजित करने का नेक काम सौंपा गया। क्योंकि अब इसविस्तृत ज्ञान को  श्रुति परम्परा के तहत समेटना मुश्किल हो चला था।  इसलिए इन्हें व्यास (विभाजन करता ) कहा गया जो समास का...

Sacred Scriptures (Part ll ,Hindi )

स्मृति ग्रंथ ?स्मृति ग्रंथों में श्रीमद्भागवद्गीता को अग्रणी ग्रंथ माना गया है। स्मृति ग्रंथ शाश्वत सिद्धांतों को व्यवहार में उतारने का साधन हैं।इन अर्थों में  भागवद्गीता जीवन का विज्ञान है जिसमें कृष्ण  देह और देह के संबंधों में मोहग्रस्त हुए अर्जुन को जो  अपने क्षात्र(क्षत्रिय ) धर्म से विमुख हो जाता है  उसके निजस्वरूप (आत्म स्वरूप )का बोध कराते हैं यह कहते हुए के यह 'आत्मन' न तो किसी को मारता ही है और न किसी के द्वारा मारा जाता है। बौद्ध धर्म के तहत धम्मपद तथा तृप्तिका (तृप्तिकाओं ) को स्मृति ग्रंथ के अंतर्गत ही रखा जाएगा। यही स्थिति जैन धर्म में 'कल्पसूत्र' की तथा सिक्ख धर्म  में 'श्री गुरुग्रंथ साहब' और श्री गुरुगोविंद सिंह कृत 'दशम  ग्रंथ'की है। दोनों ही स्मृति ग्रंथ हैं।  पुराण भी स्मृति ग्रंथ के अंतर्गत आएंगे। इनमें वेद की प्रमुख शिक्षाओं एवं सिद्धांतों को रोचक कथाओं और मिथकों के माध्यम से समझाया गया है।यहां  महापुरुषों के चरित्रों के बखान  का भी ध्येय यही रहा है। 'उप -पुराण' भी यही काम करते हैं जो संख्या में कुछ के मुताबिक़ अ...

Sacred Scriptures (Part III,HINDI )

स्मृति ग्रंथों के अंतर्गत ही रखा जाएगा - (१ )वेदांग  (२ )उपवेद  (३)दर्शन (षड्दर्शन ) (४ )न्याय शास्त्र (धर्म शास्त्र ) (५ )इतिहास को  वेदांगों के तहत व्याकरण (संस्कृत भाषा का ग्रैमर ),ज्योतिष विज्ञान ,निरुक्त (इनमें शब्दावली ,शब्दकोश ,शब्दों के उद्गम का शास्त्र ,शब्द व्युत्पत्ति  शास्त्र ,आदि  आएंगे ),शिक्षा (वैदिक मन्त्रों का उच्चारण ,आरोह अवरोह,उच्चारण कौशल  ),छंद (लय -ताल, मीटर यानी मात्राओं का हिसाब किताब ),कल्प सूत्र आदि आएंगे।  उपवेदों में शिल्प  यानी यांत्रिकी ,घर बनाने की कला ,वास्तु कला आदि धनुर्वेद (धनुष विद्या ,आयुद्ध आदि ,युद्ध कला ),गंधर्व वेद (यानी संगीत शास्त्र ),आयुर्वेद के अंतर्गत (शरीर क्रिया विज्ञान एवं औषधि शास्त्र आदि )आएंगे। शिल्प की चर्चा अथर्व वेद ,धनुर्वेद की यजुर्वेद तथा गंधर्व वेद की चर्चा सामवेद में की गई है। आयुर्वेद को विस्तार से ऋग्वेद और अथर्व वेदों ने समझाया है।  दर्शन के अंतर्गत ईश्वर के अस्तित्व को न मानने वाले नास्तिकवाद  ,भोगविलास को जीवन का अंतिम लक्ष्य मानने वाले ...

शिव को पौर्वत्य दर्शन में संहार का देवता कहा जाता है। तांडवनृत्य यानी सृष्टि का विलय और शिव का तीसरा नेत्र इस संदर्भ में पर्यायवाची बन गए हैं।भविष्य दर्शन समबुद्धि तथा ऐसी ही अन्य अवधारणाएं हैं जो मस्तिष्क और देह के संधिस्थल थर्ड आई से चस्पां हो चली हैं। यह तीसरा नेत्र देह में आत्मा (चेतन ऊर्जा )का स्रोत या मूल समझा गया है।

शिव को पौर्वत्य दर्शन में संहार का देवता कहा जाता है। तांडवनृत्य  यानी सृष्टि का विलय और शिव का तीसरा नेत्र इस संदर्भ में  पर्यायवाची बन गए हैं।भविष्य दर्शन समबुद्धि तथा ऐसी ही अन्य अवधारणाएं हैं जो मस्तिष्क और देह के संधिस्थल थर्ड आई से चस्पां हो चली हैं। यह तीसरा नेत्र देह में आत्मा (चेतन ऊर्जा )का स्रोत या मूल समझा गया है।   हमारे स्रावी तंत्र की प्रमुखतम ग्रंथि पियूष ग्रंथि (Pineal Gland )समझी गई है। हमारे हार्मोन चक्र की संचालक ग्रंथि समझा गया है पियूष ग्रंथि को। यही ग्रंथि हमारी जैवघड़ी ,दिन और रात के चक्र को चलाये हुए है।  हमारे मस्तिष्क में बहुत कहीं गहरे मध्य भाग में यह स्थित बतलाई गई है।  मिलेटोनिन हारमोन बनाती है यह ग्रंथि। प्रकाश संवेदी है यह ग्रंथि इसीलिए सोने के लिए आपको अन्धेरा करना पड़ता है। जेट लेग जैव घड़ी में पैदा विक्षोभ से ही पैदा होता है। लम्बे हवाई सफर में आप अनेक टाइम जोन्स पार करते हैं। जबकि आपकी जैव घड़ी जहां से आप उड़े थे वहां के हिसाब से चल रही होती है।  कुलमिलाकर ...